![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
إهداءات |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
المنتدى الإسلامي على مذهب أهل السنة و الجماعة فقط |
![]() |
|
أدوات الموضوع | إبحث في الموضوع | انواع عرض الموضوع |
![]() |
#393 |
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
وردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردة
وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردووورد |
![]() |
![]() |
#394 |
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
وردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردة
وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردووورد |
![]() |
![]() |
#395 |
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
وردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردة
وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردووورد |
![]() |
![]() |
#396 |
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
وردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردة
وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردووورد |
![]() |
![]() |
#397 |
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
وردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردة
وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردووورد |
![]() |
![]() |
#398 |
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
وردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردة
وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردووورد |
![]() |
![]() |
#399 |
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
وردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردةوردة
وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردوووردووورد وووردوووردوووردووورد |
![]() |
![]() |
#400 |
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]() 119 ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ عَمِلُواْ السُّوءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابُواْ مِن بَعْدِ ذَلِكَ وَأَصْلَحُواْ إِنَّ رَبَّكَ مِن بَعْدِهَا لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ 120 إِنَّ إِبْرَاهِيمَ كَانَ أُمَّةً قَانِتًا لِلَّهِ حَنِيفًا وَلَمْ يَكُ مِنَ الْمُشْرِكِينَ 121 شَاكِرًا لِّأَنْعُمِهِ اجْتَبَاهُ وَهَدَاهُ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ 122 وَآتَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَإِنَّهُ فِي الآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ 123 ثُمَّ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ أَنِ اتَّبِعْ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ 124 إِنَّمَا جُعِلَ السَّبْتُ عَلَى الَّذِينَ اخْتَلَفُواْ فِيهِ وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَحْكُمُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُواْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ
|
![]() |
![]() |
مواقع النشر (المفضلة) |
الذين يشاهدون محتوى الموضوع الآن : 3 ( الأعضاء 0 والزوار 3) | |
![]() |
|
, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , |
|
|
![]() الإعلانات النصية ( أصدقاء الأكاديمية ) |
|||||
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |